utsah class 10 | at nahi rahi hai class 10 | utsah at nahi rahi hai class 10 | उत्साह अट नहीं रही है

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पाठ -5

उत्साह, अट नहीं रही है


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 ध्वनि प्रस्तुति 

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उत्साह कविता का सार

Utsah kavita sar

उत्साह एक आह्वान गीत है. उत्साह में निराला ने बादल को संबोधित किया है . उत्साह कविता में ललित कल्पना और क्रांति-चेतना दोनों हैं .

यह कविता आजादी से पहले लिखी गई हैं। गुलाम भारत के लोग जब निराश और हताश हो चुके थे। तब उन लोगों में उत्साह जगाने के लिए कवि एक ऐसे कवि को आमंत्रित कर रहे हैं जो अपनी कविता से लोगों को जागृत कर सके। उनमें उत्साह भर सके। उनका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा सके।

ठीक वैसे ही जैसे भीषण गर्मी के बाद आकाश में बादलों को देखकर लोगों के मन में एक नई आशा , नये उत्साह का संचार हो जाता हैं। और बादलों के बरसने से धरती में नया अंकुर फूटने लगता हैं।और आसमान में बादलों को देखकर गर्मी से बेहाल लोगों का तनमन भी आनंद से भर जाता हैं।

वैसे आज तक दुनिया में जितनी भी क्रांतियां हुई या परिवर्तन हुए है। उसमें साहित्य और साहित्यकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा हैं। भारत की आजादी में लेखकों ने भी अपनी लेखनी से अपना योगदान दिया था। लोगों को जागृत करने का काम किया था। इसीलिए कहते हैं कि “कलम में तलवार से ज्यादा शक्ति होती हैं”।


निराला जी ने बादलों पर कई कविताओं की रचना की हैं। इस कविता में निरालाजी ने बादलों को दो रूपों में दर्शाया हैं। कवि कहते हैं कि एक तरफ जहाँ बादल बरस कर धरती के प्यासे लोगों की प्यास बुझाते है। धरती को शीतलता प्रदान करते हैं और जल से ही धरती में नवजीवन को पनपने , फलने फूलने का मौका मिलता है। प्राणी मात्र का जीवन , नये उत्साह से भर जाता हैं।

वहीं दूसरी ओर बादलों को कवि , एक ऐसे कवि के रूप में देखते हैं जो अपनी नई-नई कल्पनाओं से , अपने नए-नए विचारों से धरती पर नया सृजन करेगा। लोगों के भीतर एक नया जोश , नया उत्साह भरेगा। लोगों की सोई चेतना को जागृत करेगा।



उत्साह

काव्यांश 1.

बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन , धाराधर ओ !
ललित ललित , काले घुंघराले ,
बाल कल्पना के-से पाले ,
विद्युत छबि उर में , कवि नवजीवन वाले !
वज्र छिपा , नूतन कविता
फिर भर दो –
बादल गरजो !


काव्यांश 2.


विकल विकल , उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन ,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन !
तप्त धरा , जल से फिर
शीतल कर दो
बादल , गरजो !

उत्साह कविता का भावार्थ
utsah kavita class 10 explanation



बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन , धाराधर ओ !

भावार्थ –उपरोक्त पंक्तियों में कवि “सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी” ने उस समय का वर्णन बेहद खूबसूरती से किया हैं। जब बारिश होने से पहले पूरा आकाश गहरे काले बादलों से घिर जाता हैं और बार-बार आकाशीय बिजली चमकने लगती है। कवि बादलों से जोर-जोर से गरजने का आह्वान करते है।

कवि बादलों से कहते हैं कि हे बादल !! तुम जोरदार गर्जना (जोरदार आवाज करना ) करो। और आकाश को चारों तरफ से , पूरी तरह से घेर लो यानि इस पूरे आकाश में छा जाओ और फिर जोरदार तरीके से बरसो। क्योंकि यह समय शान्त होकर बरसने का नहीं हैं। इसलिए तुम जोरदार गर्जना करो। और अपनी गर्जना से सोये हुए लोगों को जागृत करो , उनके अंदर एक नया उत्साह ,एक नया जोश भर दो।

“घेर घेर घोर गगन” में अनुप्रास अलंकार है। 
“घेर घेर” पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं।



ललित ललित , काले घुंघराले ,
बाल कल्पना के-से पाले ,


भावार्थ – यहाँ पर कवि ने बादलों के रूप सौंदर्य का वर्णन किया हैं। और उनकी तुलना किसी छोटे बच्चे की कल्पना से की हैं। कवि कहते हैं कि सुंदर-सुंदर , काले घुंघराले (गोल-गोल छल्ले का सा आकार ) बादलों , तुम किसी बच्चे की कल्पना की भाँति हो। यानि जैसे छोटे बच्चों की कल्पनाएं (इच्छाएं) पल-पल बदलती रहती हैं। हर पल उनके मन में नई-नई बातें या कल्पनाएं जन्म लेती है। ठीक उसी प्रकार तुम भी हर पल अपना रूप बदल रहे हो।



विद्युत छबि उर में , कवि नवजीवन वाले !
वज्र छिपा , नूतन कविता
फिर भर दो –
बादल गरजो !

भावार्थ – कवि आगे कहते हैं कि बिजली की असीम ऊर्जा (आकाशीय बिजली) अपने हृदय में धारण करने वाले सुंदर काले घुंघराले बादलो , तुम उस कवि की भाँति हो जो , एक नई कविता का सृजन करेगा।

यहाँ पर निरालाजी बादलों को एक कवि के रूप में देखते हैं। जो अपनी कविता से धरती को नवजीवन देते हैं। क्योंकि बादलों के बरसने के साथ ही धरती पर नया जीवन शुरु होता हैं । पानी मिलने से बीज अंकुरित होते हैं और नये-नये पौधें उगने शुरू हो जाते हैं। धरती हरी-भरी होनी शुरू हो जाती हैं।

इसीलिए कवि बादलों से कहते हैं कि तुम अपने हृदय में बज्र के समान ऊर्जा वाले विचारों को जन्म दो और फिर उनसे एक नई कविता का सृजन करो। बादलों तुम अपनी कविता से निराश , हताश लोगों के मन में एक नई आशा का संचार कर दो। उनमें एक नया उत्साह भर दो। उनको उर्जावान बना दो। बादल जोरदार आवाज के साथ गरजो ताकि लोगों में नया उत्साह भर जाय।




विकल विकल , उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन ,


भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि “सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी” ने तपती गर्मी से बेहाल लोगों के बारे में वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि विश्व के सभी लोग अत्यधिक गर्मी के कारण बेहाल थे , व्याकुल थे और उनका मन कहीं नहीं लग रहा था ।



आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन !
तप्त धरा , जल से फिर
शीतल कर दो
बादल , गरजो !


भावार्थ – कवि आगे कहते हैं कि अज्ञात दिशा से आये हुए और पूरे आकाश पर छाये हुए घने काले बादलों तुम घनघोर वर्षा कर , तपती धरती को अपने जल से शीतल कर दो। बादल तुम जोरदार आवाज के साथ गरजो और लोगों में नया उत्साह भर दो।(यहां पर बादलों को अज्ञात दिशा से आया हुआ इसलिए कहा गया हैं क्योंकि बादलों के आने की कोई निश्चित दिशा नहीं होती हैं। वो किसी भी दिशा से आ सकते हैं)।

धरती पर वर्षा हो जाने के बाद लोग भीषण गर्मी से राहत पाते हैं। और उनका मन फिर से नये उत्साह व उमंग से भर जाता है।




 Q&A 


Utsah Question Answer 

उत्साह प्रश्न उत्तर 

प्रश्न 1. कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने के लिए कहता है, क्यों?

उत्तर- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी एक क्रांतिकारी कवि माने जाते है। और वो समाज में बदलाव लाना चाहते थे। लोगों की चेतना को जागृत करना चाहते थे। “गरजना” शब्द क्रांति , बदलाव और विद्रोह का प्रतीक है। इसीलिए वो बादलों  से फुहार , रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहते है। 


प्रश्न 2. कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?

उत्तर- कवि ने कविता का शीर्षक उत्साह इसलिए रखा है, क्योंकि कवि बादलों के माध्यम से क्रांति और बदलाव लाना चाहता है। वह बादलों से गरजने के लिए कहता है। एक ओर बादलों के गर्जन में उत्साह समाया है तो दूसरी ओर लोगों में उत्साह का संचार करके क्रांति के लिए तैयार करना है।

बादल भयंकर गर्जना के साथ जब बरसते हैं तो धरती के प्राणियों में एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता हैं। लोगों का मन एक बार फिर नये जोश, उमंग, विशवास, नव उर्जा और उत्साह से भर जाता हैं। कवि बादलों के माध्यम से लोगों में उत्साह का सृजन करना चाहते हैं।

प्रश्न 3. कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?

उत्तर- उत्साह कविता में  बादल निम्न अर्थों की ओर संकेत करते है-

  • बादलों में जल बरसाने की असीम शक्ति होती है जो धरती के प्राणियों में नवजीवन का संचार करते हैं।
  • बादल तपती गर्मी से बेहाल लोगों की प्यास बुझाकर उनको एक नए उत्साह व उमंग से भर देता है।
  • बादल जोरदार ढंग से गर्जना कर लोगों के अंदर की क्रांतिकारी चेतना को जागृत करने का काम करते हैं।
  • बादलों के अंदर नवसृजन करने की असीम शक्ति होती है। 



प्रश्न 4. शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद हैं, छाँटकर लिखें।

उत्तर- ‘उत्साह’ कविता में नाद सौंदर्य वाले शब्द निम्नलिखित हैं-

बादल गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!

उत्साह कविता में निम्न पंक्तियों में नाद सौंदर्य दिखाई देता है-

घेर घेर घोर गगन , धाराधर ओ ! 
ललित ललित , काले घुंघराले , बाल कल्पना के-से पाले। 
विद्युत छबि उर में। 
विकल विकल , उन्मन थे उन्मन। 


प्रश्न 5. जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।

उत्तर-

ऊपर देखो आसमान में,
किसने रंग बिखेरा काला।
सूरज जाने कहाँ छिप गया,
खो गया उसका कहीं उजाला ॥
देख गगन का काला चेहरा
बिजली कुछ मुसकाई ।
लगा बहाने गगन बनाने,
ज्यों बिजली ने आँख दिखाई ॥
कुछ वसुधा में आन समाया॥
वह लाई एक थाल में पानी,
उसका मुँह धुलवाया।
थोड़ा पानी आसमान में
बाकी सब धरती पर आया ।।
कुछ टपका फूलों पर जाकर
कुछ ने चातक की प्यास बुझाया।
कुछ तालों कुछ फसलों तक


अन्य पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1. कवि ने क्रांति लाने के लिए किसका आह्वान किया है और क्यों ?

उत्तर- कवि ने क्रांति लाने के लिए बादलों का आह्वान किया है। कवि का मानना है कि बादल क्रांतिदूत हैं। उनके अंदर घोर गर्जना की शक्ति है जो लोगों को जागरूक करने में सक्षम है। इसके अलावा बादलों के हृदय में बिजली छिपी है।

प्रश्न 2. कवि युवा कवियों से क्या आवान करता है?

उत्तर- कवि युवा कवियों से आह्वान करता है कि वे प्रेम और सौंदर्य की कविताओं की रचना न करके लोगों में जोश और उमंग भरने वाली कविताओं की रचना करें, जो लोगों पर बज्र-सा असर करे और लोग क्रांति के लिए तैयार हो सकें।

प्रश्न 3. कवि ने ‘नवजीवन’ का प्रयोग बादलों के लिए भी किया है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कवि बादलों को कल्याणकारी मानता है। बादल विविध रूपों में जनकल्याण करते हैं। वे अपनी वर्षा से लोगों की बेचैनी दूर करते हैं और तपती धरती का ताप शीतल करके मुरझाई-सी धरती में नया जीवन फेंक देते हैं। वे धरती को फ़सल उगाने योग्य बनाकर लोगों में नवजीवन का संचार करते हैं।

प्रश्न 4. बादल आने से पूर्व प्राणियों की मनोदशा का चित्रण कीजिए।

उत्तर- जब तक आसमान में बादलों का आगमन नहीं हुआ था, गरमी अपने चरम सीमा पर थी। इससे लोग बेचैन, परेशान और उदास थे। उन्हें कहीं भी चैन नहीं था। गरमी ने उनका जीना दूभर कर दिया था। उनका मन कहीं भी नहीं लग रहा था।


प्रश्न 5. कवि निराला बादलों में क्या-क्या संभावनाएँ देखते हैं?

उत्तर- कवि निराला बादलों में निम्नलिखित संभावनाएँ देखते हैं

  • बादल लोगों को क्रांति लाने योग्य बनाने में समर्थ हैं।
  • बादल धरती और धरती के प्राणियों दोनों को नवजीवन प्रदान करते हैं।
  • बादल धरती और लोगों का ताप हरकर शीतलता प्रदान करते हैं।


प्रश्न 6. कवि ने बादलों के किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कवि ने बादलों को ‘आज्ञात दिशा के घन’ और ‘नवजीवन वाले’ जैसे विशेषणों का प्रयोग किया है। कवि उन्हें अज्ञात दिशा के घन इसलिए कहा है क्योंकि बादल किस दिशा से आकर आकाश में छा गए, पता नहीं। इसके अलावा वे धरती और प्राणियों को नवजीवन देते हैं।


प्रश्न 7.‘उत्साह’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कवि ने ‘उत्साह’ कविता में बादलों का आह्वान करते हुए क्रांति लाने के लिए कहा है। इस कविता में बादलों को क्रांतिदूत मानकर सोए, अलसाए और कर्तव्यविमुख लोगों को क्रांति लाने के लिए प्रेरित किया गया है। इस क्रांति या विप्लव के बिना समाज की जड़ता और कर्तव्यविमुखता में परिवर्तन लाना संभव नहीं है। लोगों में उत्साह भरना ही ‘उत्साह’ कविता का उद्देश्य है।




 अट नहीं रही है 



अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।

कहीं साँस लेते हो ,
घर-घर भर देते हो ,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो ,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है ।

पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी , कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद गंध पुष्प माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।





अट नहीं रही है कविता का सार

at nahi rahi hai kavita sar

at nahi rahi hai class 10 Explanation
अट नहीं रही कविता फागुन की मादकता को प्रकट करती है. अट नहीं रही कविता में कवि ने फाल्गुन माह की खूबसूरती का वर्णन किया हैं। फाल्गुन माह में आने वाली बसंत ऋतु को “ऋतुराज” यूँ ही नहीं कहा जाता है। यह वाकई में “ऋतुओं का राजा” होता है। इस समय प्रकृति की जो मनमोहक सुंदरता दिखाई देती है। वह शायद ही किसी और ऋतु के आगमन के वक्त दिखता हो।

हाड़ कपाती ठंड के बाद जब धीरे-धीरे धरती का तापमान बढ़ने लगता है। इसी के साथ ही ऋतुराज वसंत का आगमन होता है। बसंत के आगमन से बाग बगीचों में सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते हैं। उनकी भीनी-भीनी खुशबू घर,आंगन और  पूरे वातावरण में हर जगह फैलने लगती है।

कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए कहा है कि “ऐसा लगता हैं मानो फाल्गुन के साँस लेने से पूरा वातावरण खुशबू से भर गया हो और सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगे खिले फूल कवि को ऐसे लगते हैं जैसे प्रकृति ने अपने गले में कोई सुंदर सी माला पहनी हो। 

इसी के साथ पेड़-पौधों में नए पत्ते लगने लगते हैं। आम , लीची में बौर आनी शुरू हो जाती है। चारों तरफ हरियाली छाने लगती है। रंग बिरंगी तितलियां व भौरों के मधुर गीत हर तरफ सुनाई देते हैं। इस समय प्रकृति की अद्भुत छटा देखने लायक होती है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने किसी दुल्हन की तरह अपना श्रृंगार किया हो। जिस पर से आँख हटानी कवि को मुश्किल लग रही है।

कवि ने फाल्गुन माह में प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन इस कविता के माध्यम से बड़ी ही खूबसूरती से किया है। 



अट नहीं रही है कविता का भावार्थ 

at nahi rahi hai bhavarth



1 .

अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।

भावार्थ 

- उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने फागुन माह में आने वाली वसंत ऋतु का वर्णन बहुत ही खूबसूरत ढंग से किया है। कवि कहते हैं कि फागुन की आभा इतनी अधिक है कि वह प्रकृति में समा नहीं पा रही है।


2 .

कहीं साँस लेते हो ,
घर-घर भर देते हो ,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो ,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है ।

भावार्थ 

-फागुन माह में ऐसा लगता हैं मानो प्रकृति एक बार फिर दुल्हन की तरह सज धज कर तैयार हो गयी हैं। क्योंकि वसंत ऋतु के आगमन से सभी पेड़ पौधे नई-नई कोपलों (नई कोमल पत्तियों ) व रंग-बिरंगे फूलों से लद जाते हैं। और जब भी हवा चलती हैं तो सारा वातावरण उन फूलों की भीनी खुशबू से महक उठता हैं। उस समय ऐसा लगता हैं मानो फागुन ख़ुद सांस ले रहा हो।और सारे वातावरण को महका रहा हो।  

उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने उसी समय का वर्णन किया हैं। आगे कवि कहते हैं कि कभी ऐसा एहसास होता है जैसे तुम (फागुन माह ) आसमान में उड़ने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रहे हो। कवि बसंत ऋतु की उस सुंदरता पर मोहित हैं। इसीलिए वो कहते हैं कि मैं अपनी आँखें हटाना तो चाहता है लेकिन मेरी आँखें हट नहीं रही हैं। यहाँ फागुन माह का मानवीकरण किया गया हैं। 


3 .

पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी , कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद गंध पुष्प माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

भावार्थ 

- बसंत ऋतु में सभी पेड़-पौधों में नये-नये-कोमल पत्ते निकल आते हैं और डाली – डाली रंग बिरंगी फूलों से लद जाती हैं। कवि उस समय की कल्पना करते हुए कहते हैं कि ऐसा लग रहा हैं मानो प्रकृति ने अपने गले में रंग बिरंगी भीनी खुशबू देने वाली सुंदर सी माला पहन रखी हो। कवि के अनुसार प्रकृति के कण कण में इतनी सुंदरता बिखरी पड़ी है कि अब वह धरा में समा नहीं पा रही है।यहाँ भी मानवीकरण किया गया हैं। 




Q&A


at nahi rahi hai Question Answer 

अट नहीं रही है  प्रश्न उत्तर 

प्रश्न-1 छायावाद की एक खास विशेषता है। अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।

उत्तर- कविता की निम्न पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है कि अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाया गया हैं। 

  • आभा फागुन की तन , सट नहीं रही है।
  • उड़ने को नभ में तुम , पर-पर कर देते हो। 
  • आँख हटाता हूँ तो , हट नहीं रही है।


प्रश्न 2 . कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही हैं ?

उत्तर – फागुन माह में चारों तरफ एक से एक खूबसूरत फूल खिल जाते हैं। डाली डाली हरे और लाल रंग के पत्तों से भर जाती हैं। बातावरण सुगंधित फूलों की खुशबू से महक उठता हैं। प्रकृति इतनी सुंदर व मनमोहक हो उठती हैं कि कवि उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाते हैं। वह प्रकृति के उस सौंदर्य से अपनी आँखें हटाना तो चाहते हैं पर उनकी आँखें उस पर से हट नहीं पा रही है। 

प्रश्न 3 .  प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया हैं ?

उत्तर – प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन निम्न रूपों में किया हैं। 

  • कवि को ऐसा लग रहा है मानो प्रकृति ने रंग बिरंगे फूल पत्तों से अपना मनमोहक श्रृंगार किया है।
  • फूलों ने अपनी भीनी भीनी खुशबू चारों तरफ बिखराकर वातावरण को और भी सुगंधित कर दिया है। 
  • प्रकृति अपने गले में लाल और हरे पत्तों की खूबसूरत माला पहन कर खुशी से झूम रही हैं। 
  • चारों तरफ हरियाली छाने से प्रकृति का सौंदर्य कई गुना बढ़ गया है। 
  • प्रकृति ने एक बार फिर से इतना मनमोहक रूप धारण किया है कि कवि को अब उसके सौंदर्य से अपनी आंख हटाने में मुश्किल हो रही है। 



प्रश्न 4 .फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?

उत्तर- फागुन माह में “ऋतुराज” बसंत का आगमन होता हैं। पतझड़ के समय फूल पत्ते विहीन पेड़ पौधों में फिर से नई कोपल फूटने लगती हैं। बाग़ बगीचों में अनेक प्रकार के फूल खिलने लगते हैं। और उन फूलों की खुशबू से सारा वातावरण महक उठता हैं। प्रकृति की सुंदरता उस समय देखने लायक होती हैं। 

प्रश्न 5 .इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर – 

  • “उत्साह” और “अट नहीं रही हैं ” , दोनों ही कविताओं में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है। “उत्साह” कविता में उन्होंने बादल का मानवीकरण कर उससे  “गरज गरज कर बरसने” को कहते हैं। तो दूसरी कविता “अट नहीं रही हैं” में वह फाल्गुन माह का मानवीकरण कर उसकी सुंदरता का बखान करते हैं। 
  • कविता में अनुप्रास , रूपक , यमक , उपमा आदि अलंकारों का शानदार तरीके से प्रयोग किया गया है।
  • कविता को लयबद्ध कर गीत शैली में लिखा गया है।
  • दोनों कविताओं में खड़ी हिंदी का प्रयोग हुआ है। 
  • कविता में तत्सम शब्दों का प्रयोग भी बहुत खूबसूरती से किया गया है।
  • “उत्साह” और “अट नहीं रही हैं ” , दोनों कविताओं में कवि ने प्रकृति का ही चित्रण किया है। और प्रकृति के माध्यम से ही अपने मनोभावों को प्रकट करने की कोशिश की है। 



प्रश्न 6 . होली के आसपास प्रकृति में  जो परिवर्तन दिखाई देते हैं उन्हें लिखिए ?

उत्तर – होली फागुन माह में आती हैं जो अंग्रेजी कैलेंडर के आधार पर फरवरी या मार्च का महीना होता है।  और ठीक इसी माह भारत में ऋतुराज बसंत का आगमन भी होता है। और ऋतुराज बसंत के आगमन से प्रकृति एक बार फिर से सजने संवरने लगती है।

बाग बगीचे , खेत खलिहानों में चारों तरफ धीरे-धीरे फूल खिलने लगते हैं। आम , लीची जैसे अनेक पेड़ों में बौंर आनी शुरू हो जाती है। गुन-गुन करते भौंरे एक फूल से दूसरे फूल पर मंड़राते लगते हैं। पेड़ हरे , लाल व पीले रंग के पत्तों से लदने शुरू हो जाते हैं।  काफी लंबी ठिठुरन भरी ठंड के बाद इस माह धरती का तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। और लोगों को ठंड से राहत मिली शुरू हो जाती है। 

एक तो हाड़ कांपती ठंड से छुटकारा  , ऊपर से चारों तरफ खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य , जिससे लोगों का मन प्रसन्नता व उमंग से भर जाता है। और ठीक इसी समय मौज-मस्ती , उमंग व रंगो का त्यौहार होली भी आता है जो लोगों के खुशियों में चार चांद लगा देता है।
 


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प्रश्न 1. ‘कहीं साँस लेते हो’ ऐसा कवि ने किसके लिए कहा है और क्यों?
अथवा
कवि ने फागुन का मानवीकरण कैसे किया है?

उत्तर- फागुन महीने में तेज हवाएँ चलती हैं जिनसे पत्तियों की सरसराहट के बीच साँय-साँय की आवाज़ आती है। इसे सुनकर ऐसा लगता है, मानो फागुन साँस ले रहा है। कवि इन हवाओं में फागुन के साँस लेने की कल्पना कर रहा है। इस तरह कवि ने फागुन का मानवीकरण किया है।


प्रश्न 2. ‘उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो’ के आलोक में बताइए कि फागुन लोगों के मन को किस तरह प्रभावित करता है?

उत्तर- ‘उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो’ से ज्ञात होता है कि फागुन में चारों ओर इस तरह सौंदर्य फैल जाता है कि वातावरण मनोरम बन जाता है। रंग-बिरंगे फूलों के खुशबू से हवा में मादकता घुल जाती है। ऐसे में लोगों का मन कल्पनाओं में खोकर उड़ान भरने लगता है।


प्रश्न 3. ‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर फागुन में उमड़े प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर- फागुन का सौंदर्य अन्य ऋतुओं और महीनों से बढ़कर होता है। इस समय चारों ओर हरियाली छा जाती है। खेतों में कुछ फसलें पकने को तैयार होती हैं। सरसों के पीले फूलों की चादर बिछ जाती है। लताएँ और डालियाँ रंग-बिरंगे फूलों से सज जाती हैं। प्राणियों का मन उल्लासमय हुआ जाता है। ऐसा लगता है कि इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य छलक उठा है।

प्रश्न 4. ‘अट नहीं रही है’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- ‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन महीने के सौंदर्य का वर्णन है। इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य कहीं भी नहीं समा रहा है और धरती पर बाहर बिखर गया है। इस महीने सुगंधित हवाएँ वातावरण को महका रही हैं। पेड़ों पर आए लाल-हरे पत्ते और फूलों से यह सौंदर्य और भी बढ़ गया है। इससे मन में उमंगें उड़ान भरने लगी हैं।


सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जीवन परिचय 


सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म बंगाल के महिषादल में सन 1889 में हुआ था। वो मूलतः गढ़ाकोला (जो उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में स्थित हैं।) के निवासी थे। निराला जी की प्रारम्भिक शिक्षा महिषादल में ही हुई। उन्हें हिंदी के अलावा संस्कृत , बांग्ला व अंग्रेजी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। उनकी  संगीत और दर्शनशास्त्र में भी गहरी रूचि थी।

निराला जी  रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद के विचारों से प्रेरित थे। निराला का पारिवारिक जीवन दुखों और संघर्षों से भरपूर था। परिजनों के आकस्मिक निधन से उन्हें गहरा आधात लगा । साहित्य की सेवा करते हुए सन 1961 में उनका देहांत हो गया।

उनकी रचनाओं में दार्शनिक , विद्रोह , क्रांति , प्रेम की तरलता , प्रकृति का विराट तथा उदार आदि भाव देखने को मिलते है। छायावादी रचनाकारों में सबसे पहले उन्होंने ही मुक्त छंद का प्रयोग किया था ।

उनकी कविताओं में एक ओर जहां शोषित, उपेक्षित, पीड़ित और प्रताड़ित जन के प्रति गहरी सहानुभूति का भाव मिलता है , वहीं दूसरी ओर शोषक वर्ग और सत्ता के प्रति प्रचंड प्रतिकार का भाव भी समाहित है। 

प्रमुख रचनाएँ 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख रचनाओं में अनामिका, परिमल , गीतिका , कुकुरमुत्ता और नए पत्ते हैं।राम की शक्ति पूजा और सरोज स्मृति से कवि को विशेष प्रसिद्धि प्राप्त है. इसके अलावा उपन्यास , कहानी , आलोचना और निबंध लेखन में भी उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली है ।





जय हिन्द : जय हिंदी 
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